मत पढ़ना यार ! मैंने ख़ुद के पढ़ने के लिए लिखा है !
फ़ालतू बैठा था अभी । आप यूँ ही बोर हो जाओगे ।
१. आठ अरब की इस दुनिया में ऊपर के 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल धन का 76 प्रतिशत है. बीच के मध्यम वर्ग (40 प्रतिशत) के पास 22 प्रतिशत है. और चौंकने की बारी अब है…..नीचे के 50 प्रतिशत के पास मात्र 2 प्रतिशत धन है. यही असमान वितरण गरीबी और बेरोजगारी को पैदा करता है. पुरानी व्यवस्थाओं को क्रांतियों के नाम पर उखाड़ फेंकने से क्या हासिल हुआ ?
भारत में भी ऊपर के दस प्रतिशत ने 57 प्रतिशत धन खींच रखा है और वर्तमान में यह स्पीड तेजी से बढ़ रही है. ऊपर मक्खन है पर व्यवस्था के इस बिलौने में नीचे छाछ भी नहीं बच रही ! राजनेता, अफसर और दलाल का गठजोड़ गजब का शोषण करता है…हर जगह, चाहे अमेरिका हो, यूरोप हो, अफ्रीका या एशिया. ऊपर से ‘राष्ट्र’ और ‘धर्म’ का नाम, इज्जत का सवाल – फुटबॉल या क्रिकेट के नाम से ही सही….ऐसे में सब दर्द, पीड़ा, गुस्सा, समझ, बदलाव की उम्मीद…सब दम तोड़ देते हैं.
२. रूस और यूक्रेन लड़ रहे हैं. कई अफ्रीकी देश भी लड़ रहे हैं अन्दर ही अन्दर. कई अरब देशों में भी अशांति है. आदमी के भीतर का जानवर मौका लगते ही बाहर निकल आता है. इनका सरदार कोई शैतान किस्म का मुखिया हो जाता है. किसी न किसी नाम से समाज को बांटने के काम में राजनेता सफल हो जाता है और जब इसकी अति हो जाती है तो छोटी बड़ी खूनी लड़ाइयाँ हो जाती हैं. फिर मूल बात पीछे रह जाती है. मीडिया नहीं बताता है यूक्रेन में किस बात की लड़ाई है. अमेरिका और यूरोप का वर्शन चलता रहता है कि रूस की गलती है. मीडिया हर जगह अपनी स्वतंत्रता, पहचान और इज्जत खोता जा रहा है.
३. मुझे ख़ुशी हुई जब ट्विटर खरीदने वाले एलन मस्क और अमेजन वाले बुजोस ने अनेक कर्मचारियों को हटाते हुए अपने कारण गिनाये. उनके मुताबिक़ अनुमान के हिसाब से ऑनलाइन व्यापार नहीं चला है, जैसा कोरोना के टाइम पर कहा गया था कि आने वाले समय में ऑनलाइन ही होगा सब…. मुझे भी ऑनलाइन व्यापार में बहुत कम रुचि है. विश्व की असमानता को यह और बढ़ाएगा. अभी तो टॉप दस प्रतिशत के पास तीन चौथाई धन है, अगर ऑनलाइन ज्यादा चला तो मिडल क्लास का काफी हिस्सा भी ऊपर वालों के कब्जे में हो जाएगा. छोटा व्यापारी निपट लेगा और मुनीम की नौकरी करेगा, किसी बड़े सेठ के यहाँ. जैसे किसानों से जमीन छीनकर उसे मजदूर बनाने का ड्रामा चल रहा है.
४. पूरी दुनिया में किसान परेशान हैं. उपभोक्ता भी परेशान हैं. खुश है तो बिचौलिए. वे इसलिए खुश और समृद्ध हो रहे हैं, क्योंकि उनकी लागत कम है और मुनाफा मनचाहा. जब चाहे किसान और उपभोक्ता को ठेंगा दिखा दे. इन बिचोलियों में जब बड़े वाले मैदान में होते हैं तब सबसे अधिक ख़राब स्थिति पैदा होती है. उनके हाथ लम्बे होते हैं और वे दुनिया के एक हिस्से से दूसरे तक फैले होते हैं. इधर का माल उधर करके वे किसान और उपभोक्ता, दोनों का बजट बिगाड़ देते हैं. पहले अपने भारत में ऐसे बड़े खिलाड़ी नहीं थे पर अब बहुत हो गए हैं. अब वे कब माल को दुबई के रास्ते पाकिस्तान और लंका के रास्ते जापान भेज दें, पता ही नहीं चलता. और भाव उसी अनुसार लगते हैं मंडियों में.
५. ओशो कहते थे कि दुनिया से दुःख कभी जाएगा नहीं. सुख भी कभी आसानी से नहीं मिलेगा. क्योंकि इन दोनों की परिभाषाएँ और समझ बहुत भ्रमित करने वाली हैं. रिलेटिविटी के चक्कर में इंसान उलझा रहता है और तुलना कभी सुखी नहीं होने देती है. मैं समझता हूँ कि दुनिया की अधिकतर व्यवस्थाओं को मिटाकर मानवीय व्यवस्थाओं की स्थापना लाजिमी हो गई हैं. लेकिन ऐसा होने से पहले, ऐसा करने से पहले उस देश के लोगों को नई व्यवस्था के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से, आध्यात्मिक स्तर पर, तैयार करना चाहिए. ऐसा नहीं होने पर नई व्यवस्था पहले की तरह फिर शोषण का कारोबार करने लगेगी. जैसे ईरान और रूस में पहले की व्यवस्थाओं की बजाय अब स्वतंत्रता कम है. जैसे भारत में आज बुद्ध, कबीर या ओशो का होना मुश्किल है….आज वे होते तो हर दिन देश के किसी न किसी कोने में उन पर भावनाओं को आहत करने के मुकदमे चल रहे होते !
अभिनव राजस्थान, एक नई मनुष्यता की खोज है, एक नई व्यवस्था का सपना है. जनजागरण इसकी पहली शर्त है. गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलना एक शर्त है. जिम्मेदारी का भाव एक सीढ़ी है. मैं बेवकूफों की तरह कई बरसों से ऐसे काम पर लगा हूँ, जिसके सफल होने के बेहद कम चांस हैं ! पता नहीं क्यों कुछ आत्माओं ने उसे और मुझे अपना बना रखा है. उनके विश्वास के आगे मेरी चलती नहीं है और मैं बिना थके कुछ न कुछ करता रहता हूँ, कोई न कोई कदम भरता रहता हूँ. अपनी बर्बादी का खेल खेलता रहता हूँ.
सबने मेरी कोई न कोई पहचान समझ रखी है, जो है नहीं ! बाकी अधिकतर लोग मुझे कोई नेता शेता समझकर भूल कर लेते हैं !सफल हुआ तो वे शायद मुझे मेरी नजर से देखेंगे और तब वे खुद को मेरी आँखों में देखेंगे…….आमीन, अब दिल कहने लगा है कि वह होगा, जो मैंने सोचा है. बस यार, इतनी बोरियत बहुत है………….
ओशोक