गुवाहाटी: असम में मटक समुदाय अनुसूचित जनजाति का दर्जा और पूर्ण स्वायत्तता की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आया है। पिछले दस दिनों से समुदाय के लोग लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान दो बड़ी रैलियां हो चुकी हैं, जिनमें 30-40 हजार लोग मशाल लेकर शामिल हुए। आंदोलन के बढ़ते दायरे को देखते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बातचीत का प्रस्ताव दिया, लेकिन मटक समुदाय के प्रतिनिधियों ने बातचीत से इनकार कर दिया।
मटक समुदाय का इतिहास
मटक समुदाय का इतिहास असम की सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि से गहराई से जुड़ा है। 18वीं सदी में जब अहोम राज्य कमजोर हो रहा था, तब मटक समुदाय एक मजबूत शक्ति के रूप में उभरा। उनका मुख्य निवास ऊपरी असम के डिब्रूगढ़ और तिनसुकिया जिलों के आसपास है।
इस समुदाय की पहचान मोअमोरिया आंदोलन से होती है, जिसमें उन्होंने अहोम राजशाही के खिलाफ विद्रोह किया था। संघर्ष के बाद 1805 में अहोम राज्य ने मटक को एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में मान्यता दी और बारसेनापति को शासक नियुक्त किया।
प्रमुख मांगें
मटक समुदाय की मुख्य मांग है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया जाए। उनका कहना है कि उनका इतिहास और सामाजिक-आर्थिक स्थिति उन समुदायों के समान है जिन्हें पहले से एसटी का दर्जा प्राप्त है।
साल 2019 में केंद्र सरकार ने मटक, मोरान, चैत जनजाति, ताई अहोम, चुटिया और कोच-राजबोंगशी को एसटी सूची में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है।
आंदोलन और बढ़ता तनाव
मटक समुदाय का विरोध दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। छह आदिवासी समूह डिब्रूगढ़ सहित कई जिलों में रैलियां कर रहे हैं। समुदाय के नेता सरकार पर धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं। ऑल असम मटक स्टूडेंट यूनियन के केंद्रीय समिति अध्यक्ष संजय हजारिका ने कहा कि मटक समुदाय ऐतिहासिक रूप से जनजाति है, लेकिन अब तक उन्हें आधिकारिक दर्जा नहीं मिला।
उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, आंदोलन जारी रहेगा। यदि जरूरत पड़ी तो समुदाय नई दिल्ली तक मार्च करेगा।