📍 भीलवाड़ा: आजादी के 70 साल बाद भी ग्रामीण इलाकों में अंधविश्वास और अशिक्षा के चलते लोग इलाज के नाम पर अपने मासूम बच्चों को झोलाछाप और भोपाओं के पास ले जा रहे हैं। मेडिकल साइंस की तमाम प्रगति के बावजूद ओझा और फकीर आज भी गर्म सलाखों से बच्चों को दाग रहे हैं। मंगलवार को सदर थाना क्षेत्र के इरास गांव में ऐसा ही दिल दहला देने वाला मामला सामने आया।
दागने से बिगड़ी बच्चे की तबीयत
10 से 12 दिन पहले, 9 महीने के बच्चे को निमोनिया की शिकायत थी। इलाज कराने के बजाय परिजन उसे एक भोपे के पास ले गए, जिसने बच्चे को गर्म सलाख से दाग दिया। इससे मासूम की तबीयत और बिगड़ गई। मंगलवार शाम परिजन बच्चे को भीलवाड़ा के महात्मा गांधी जिला चिकित्सालय लेकर पहुंचे।
जिला चिकित्सालय अधीक्षक डॉ. अरुण गौड़ ने बताया कि बच्चे की हालत गंभीर थी, इसलिए उसे आईसीयू में भर्ती कर वेंटिलेटर पर रखा गया। गहन चिकित्सा इकाई में कई घंटे उपचार चला, लेकिन डॉक्टरों की कोशिशों के बावजूद मासूम को बचाया नहीं जा सका।
डॉक्टरों ने की पूरी कोशिश
अस्पताल की इंचार्ज डॉ. इंदिरा सिंह के नेतृत्व में डॉक्टरों की विशेष टीम बनाई गई थी। टीम ने लगातार तीन दिन बच्चे को ऑब्जर्वेशन पर रखा और वेंटिलेटर सपोर्ट पर उपचार किया। लेकिन बच्चे की स्थिति में सुधार नहीं हुआ और रविवार को उसने अंतिम सांस ली।
बाल कल्याण समिति कर रही जांच
बाल कल्याण समिति के सदस्य विनोद राव ने इस घटना पर गहरा दुख जताया है। उन्होंने बताया कि उन्हें महात्मा गांधी जिला चिकित्सालय से सूचना मिली कि इलाज के नाम पर बच्चे को गर्म सलाख से दागा गया है। समिति ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है और परिजनों से बयान लिए जा रहे हैं।
विनोद राव ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि 2025 में भी ऐसे अंधविश्वासी कृत्य हो रहे हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि किसी भी बीमारी की स्थिति में डॉक्टरों की सलाह लें, तांत्रिकों या ओझाओं पर भरोसा न करें।
2025 में अब तक 90 से अधिक मामले
सूत्रों के अनुसार, इस वर्ष अब तक प्रदेश में 90 से अधिक ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें बच्चों को अंधविश्वास के नाम पर गर्म सलाखों से दागा गया। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और शिक्षा का अभाव इन घटनाओं की मुख्य वजह है।


