कर्नाटक सरकार ने 22 सितंबर से 7 अक्टूबर 2025 तक राज्य में जातिगत जनगणना कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। सरकार ने आदेश में कहा कि कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को इस अवधि के दौरान सभी नागरिकों की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति पर सर्वेक्षण करने की अनुमति दी जाती है। आयोग के अध्यक्ष ने पहले सरकार को पत्र लिखकर इस अवधि में सर्वे कराने की मंशा जताई थी।
सरकार ने स्पष्ट किया कि सर्वे की तिथियां तय करने और औपचारिक आदेश जारी करने से पहले प्रस्ताव की सावधानीपूर्वक जांच की गई थी।
उच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को इस सर्वेक्षण की वैधता पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिकाओं पर राज्य सरकार से जवाब मांगा। न्यायमूर्ति अनु शिवरमण और न्यायमूर्ति राजेश राय की खंडपीठ ने आदेश दिया कि याचिकाओं को सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। इसके साथ ही कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग और भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त को भी नोटिस जारी किया गया।
भाजपा की आपत्ति और अपील
भाजपा की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार जातिगत जनगणना के माध्यम से हिंदू धर्म को बांटने का प्रयास कर रही है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे जनगणना के दौरान धर्म कॉलम में खुद को हिंदू के रूप में दर्ज करें।
हाल ही में वीरशैव-लिंगायत महासभा ने अपने समुदाय के लोगों से धर्म कॉलम में वीरशैव-लिंगायत लिखने की अपील की थी। विजयेंद्र, जो शिकारीपुरा से विधायक हैं, ने कहा कि भाजपा के राजनीतिक चिंतन शिविर में यह संकल्प लिया गया कि जातिगत जनगणना के दौरान किसी भी जाति या समुदाय के लोग धर्म कॉलम में केवल हिंदू ही लिखें।
सर्वेक्षण की लागत
इस प्रस्तावित जातिगत जनगणना की अनुमानित लागत 420 करोड़ रुपये है। यह सर्वे 22 सितंबर से 7 अक्टूबर के बीच किया जाएगा।