केरल में ‘दिमाग खाने वाले अमीबा’ से 19 मौतें, जानें लक्षण और बचाव के उपाय

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केरल में दिमाग खाने वाले अमीबा के कारण बढ़ता खतरा
केरल में दिमाग खाने वाले अमीबा के कारण बढ़ता खतरा

तिरुवनंतपुरम : केरल एक दुर्लभ लेकिन घातक बीमारी से जूझ रहा है, जिसने हाल के महीनों में 19 लोगों की जान ले ली है। इस बीमारी का कारण एक सूक्ष्म परजीवी है जिसे नेगलेरिया फाउलेरी कहा जाता है। इसे आमतौर पर ‘दिमाग खाने वाला अमीबा’ कहा जाता है, जो प्राथमिक अमीबिक मेनिंगोएन्सेफेलाइटिस (पीएएम) नामक खतरनाक स्थिति उत्पन्न करता है। यह संक्रमण लगभग हमेशा जानलेवा साबित होता है और इससे संक्रमित 98 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। इस साल राज्य में इसके 70 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।

नौ वर्षीय बच्ची की मौत, परिवार सदमे में

कोझिकोड की नौ वर्षीय बच्ची की मौत ‘दिमाग खाने वाले अमीबा’ के संक्रमण से हो गई। उसकी मां ने बताया कि उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि उनकी बेटी अब नहीं रही। उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारियों पर जानकारी स्पष्ट न देने का आरोप लगाया। यह बच्ची हाल के महीनों में पीएएम से संक्रमित होने वाले मरीजों में से एक थी। यह संक्रमण बेहद दुर्लभ लेकिन लगभग हमेशा घातक मस्तिष्क संक्रमण है, जो नेगलेरिया फाउलेरी परजीवी के कारण होता है।

संक्रमण के लक्षण

स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार यह रोग बेहद तेजी से फैलता है। शुरूआती लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, मतली और गर्दन में अकड़न शामिल हैं। ये लक्षण जल्दी ही दौरे और कोमा में बदल जाते हैं। आमतौर पर एक से दो सप्ताह के भीतर मरीज की मृत्यु हो जाती है। डॉक्टरों का कहना है कि इसे अक्सर बैक्टीरियल मैनिंजाइटिस समझ लिया जाता है और जब तक असली कारण का पता चलता है, तब तक मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है। स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने विधानसभा में बताया कि अधिकांश जल स्रोतों में अमीबा मौजूद हैं, हालांकि इसके केवल कुछ प्रकार ही खतरनाक होते हैं। राज्य में पीएएम का पहला मामला 2016 में दर्ज हुआ था।

कहां पाया जाता है यह खतरनाक अमीबा

यह परजीवी गर्म मीठे पानी जैसे तालाब, झील, नदियों और खराब रखरखाव वाले स्विमिंग पूलों में पाया जाता है। इसे निगलने से बीमारी नहीं होती, लेकिन जब पानी नाक में जाता है, तो परजीवी नाक के रास्ते मस्तिष्क तक पहुंच जाता है। इससे मस्तिष्क में सूजन और ऊतकों का विनाश होता है।

इलाज बेहद कठिन, बचाव ही समाधान

स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि पीएएम का इलाज बहुत मुश्किल है। कोई एक विशेष दवा इसका पूर्ण उपचार नहीं कर सकती। अब तक बचने वाले मरीजों का इलाज एम्फोटेरिसिन बी, मिल्टेफोसिन और रिफाम्पिसिन जैसी दवाओं के संयोजन और मस्तिष्क की सूजन कम करने वाले उपचार के जरिए किया गया है। दुनिया भर में इससे ठीक होने वाले मरीजों की संख्या बेहद कम है।

तैरते समय बरतें सावधानी

केरल में डॉक्टर अब पुष्ट मामलों के लिए बहु-विषयक टीम बना रहे हैं जिनमें न्यूरोलॉजिस्ट, बाल रोग विशेषज्ञ, संक्रामक रोग विशेषज्ञ और गहन देखभाल विशेषज्ञ शामिल हैं। लोगों को सलाह दी गई है कि गर्मियों में स्थिर या खराब रखरखाव वाले पानी में न तैरें और न ही गोता लगाएं। तैरते समय नाक में क्लिप लगाना जरूरी है ताकि पानी नाक में न जा सके।

और क्या-क्या सावधानियां जरूरी

डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों को होज या स्प्रिंकलर से नहीं खेलना चाहिए क्योंकि इससे पानी नाक में जाने का खतरा बढ़ता है। बगीचे की होज को इस्तेमाल से पहले अच्छी तरह धोएं। पैडलिंग पूल की रोज सफाई करें और स्विमिंग पूल का क्लोरीनीकरण सही तरीके से करें। नाक धोने के लिए केवल उबला या फिल्टर किया हुआ पानी इस्तेमाल करें।

गर्म पानी में पनपता है परजीवी

नेगलेरिया फाउलेरी गर्म पानी में पनपता है और उच्च तापमान पर पनपने वाले बैक्टीरिया पर निर्भर करता है। जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मियों में इसका खतरा और बढ़ सकता है। गर्मियों में लोग राहत की तलाश में झीलों और नदियों का रुख करते हैं, जिससे संक्रमण के संपर्क में आने की संभावना बढ़ जाती है। 2023 में कोझिकोड में निपाह प्रकोप के बाद, केरल ने मस्तिष्क ज्वर के हर मामले की रिपोर्ट और जांच की नीति बनाई, जिसमें इस तरह के दुर्लभ संक्रमण भी शामिल हैं।

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