अनुसूचित जाति की महिला का सहारा लेकर विरोधियों पर फर्जी मुकदमे दर्ज कराने का आरोप
लखनऊ : अनुसूचित जाति की महिला का सहारा लेकर विरोधियों पर फर्जी मुकदमे दर्ज कराने और सरकारी धनराशि प्राप्त करने के आरोप में अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को #एससी-एसटी एक्ट की विशेष अदालत ने दोषी ठहराया है। विशेष न्यायाधीश विवेकानंद त्रिपाठी ने उन्हें 12 वर्ष के कठोर कारावास और 45 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है।
पहले भी मिल चुकी है आजीवन कारावास की सजा
उल्लेखनीय है कि इसी कोर्ट ने परमानंद गुप्ता को इससे पहले 19 अगस्त 2025 को एक अन्य मामले में आजीवन कारावास और पांच लाख एक हजार रुपये के जुर्माने की सजा भी दी थी। मौजूदा मामला थाना चिनहट से जुड़ा है, जिसमें अनुसूचित जाति की पूजा रावत ने कोर्ट में अधिवक्ता परमानंद गुप्ता के माध्यम से प्रार्थना पत्र देकर विपिन यादव, रामगोपाल यादव, मोहम्मद तासुक और भगीरथ पंडित के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
जांच में सामने आई सच्चाई
विवेचना में सामने आया कि पूजा रावत ने अपने बयान में कहा कि उसके साथ कोई ऐसी घटना नहीं हुई, न ही वह किसी अभियुक्त को जानती है। उसने आरोप लगाया कि वकील परमानंद गुप्ता ने उसका आधार कार्ड ठीक कराने के बहाने फर्जी प्रार्थना पत्र तैयार कर रिपोर्ट दर्ज कराया। इस आधार पर अदालत ने परमानंद गुप्ता को बतौर अभियुक्त तलब किया।

अदालत का फैसला और सजा का विवरण
अदालत ने उन्हें झूठा साक्ष्य गढ़ने के आरोप में तीन वर्ष, धोखाधड़ी के आरोप में चार वर्ष तथा #एससी-एसटी एक्ट के तहत पांच वर्ष के सश्रम कारावास की सजा दी है। सभी सजाएं अलग-अलग भुगतनी होंगी। कोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में विवेचना के बाद अंतिम रिपोर्ट लग चुकी है, उनमें तब तक प्रतिकर न दिया जाए जब तक अदालत अभियुक्त को तलब न कर ले।
बार काउंसिल और पुलिस को दिए गए निर्देश
कोर्ट ने दोषी अधिवक्ता के न्यायालय प्रवेश व प्रैक्टिस पर रोक लगाने हेतु निर्णय की प्रति उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को भेजने का आदेश दिया है। साथ ही, पुलिस आयुक्त #लखनऊ को निर्देश दिया गया है कि बलात्कार या गैंगरेप की बार-बार की गई एफआईआरों में यह उल्लेख अनिवार्य रूप से किया जाए कि शिकायतकर्ता या उसके परिजनों ने पूर्व में ऐसे कितने मुकदमे दर्ज कराए हैं। जांच में पता चला कि परमानंद गुप्ता और पूजा रावत के माध्यम से क्रमशः 11 और 18 फर्जी मुकदमे दर्ज कराए गए थे।


