माता-पिता की सहमति से विवाह: भारतीय संस्कृति की पहचान

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भारतीय समाज में माता-पिता की सहमति से विवाह का समर्थन दर्शाती तस्वीर
भारतीय समाज में माता-पिता की सहमति से विवाह का समर्थन दर्शाती तस्वीर

नई दिल्ली : देश में आधुनिकता और बदलते विचारों के बीच माता-पिता की सहमति के बिना विवाह करने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। युवा बालिग होते ही घर से निकलकर मनचाही शादी कर लेते हैं, जिससे माता-पिता की भावनाएँ आहत होती हैं और परिवार टूटने की नौबत आ जाती है। भारतीय संस्कृति में विवाह दो परिवारों का पवित्र बंधन माना जाता है। ऐसे में माता-पिता की सहमति की अनदेखी परिवारिक मूल्यों पर गंभीर चोट है।

माता-पिता का अनुभव सुरक्षा की ढाल

विशेषज्ञों का कहना है कि उम्र के साथ आने वाला अनुभव और माता-पिता का मार्गदर्शन बच्चों की सबसे बड़ी सुरक्षा है। जल्दबाजी में लिए गए निर्णय आगे चलकर पछतावे का कारण बनते हैं। जबकि माता-पिता की सहमति से हुआ विवाह रिश्तों में मजबूती और सामाजिक सम्मान बनाए रखता है।

सरकार को समझने की आवश्यकता

सामाजिक संगठनों का कहना है कि भारत की पारिवारिक संरचना पश्चिमी देशों से अलग है। यहाँ परिवार समाज की मुख्य इकाई है।
केवल बालिग होने के आधार पर माता-पिता को छोड़कर भाग जाना न माता-पिता के सम्मान के लिए उचित है और न ही समाज के लिए।
18 वर्ष तक बच्चों को पालना-पोसना, शिक्षित करना और संस्कार देना — उसके बाद अचानक उनका अलग हो जाना मानसिक और सामाजिक समस्याएँ पैदा करता है। इससे कई परिवार तनाव और सामाजिक तिरस्कार झेलते हैं।

इसी कारण सामाजिक संस्थाएँ सरकार से ऐसे कानूनी उपायों की मांग कर रही हैं जो पारिवारिक मूल्यों को सुरक्षित रखते हुए विवाह में माता-पिता की सहमति को महत्व दें।

विशेषज्ञों के विचार

विशेषज्ञों का कहना है कि विवाह केवल प्रेम नहीं, बल्कि संस्कार और जिम्मेदारी का विषय है। भारतीय परिवार व्यवस्था तभी मजबूत रह सकती है, जब माता-पिता को सम्मान और निर्णय में सहभागिता मिले।

भारतीय संस्कृति की वास्तविक पहचान

भारतीय समाज में माता-पिता को ईश्वर का दर्जा दिया गया है। उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन के साथ लिए गए निर्णय जीवन को अधिक सफल, शांतिपूर्ण और सम्मानजनक बनाते हैं।
विवाह जीवन का महत्वपूर्ण कदम है, जिसे परिवार की सहमति और संस्कारों के साथ उठाया जाए — यही भारतीय संस्कृति की सही पहचान है।

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