नाग पंचमी के दिन नागों की विशेष पूजा अर्चना करना चाहिए। पूजा के लिए घी, खीर और गुग्गुल का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अपने परिवार के साथ भोजन करना चाहिए। पहले मीठा भोजन करना चाहिए और उसके बाद अपने हिसाब से अन्य भोजन कर सकते हैं। नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है, नागों का इस तिथि से क्यों खास नाता है, यह जानने के लिए आपको नागों से जुड़ी यह कथा पढ़नी चाहिए। इस कथा का वर्णन अग्नि पुराणों में मिलता है।
एक बार राक्षसों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया। उस समय समुद्र से अतिशय श्वेत उच्चैःश्रवा नामक अश्व निकला। उसे देखकर नागमाता कद्रू ने अपनी सौत विनता से कहा कि देखो, यह अश्व श्वेत वर्ण का है, लेकिन इसके बाल काले दिख रहे हैं। तब विनता ने कहा कि न तो यह अश्व श्वेत है, न काला है और न लाल। यह सुनकर कद्रू ने कहा कि मेरे साथ शर्त लगाओ कि अगर मैं इस अश्व के बालों को कृष्णवर्ण का दिखा दूं तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और अगर नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाऊंगी। विनता ने यह शर्त स्वीकार कर ली।
कद्रू के नागपुत्रों का इनकार और शाप
इसके बाद कद्रू ने अपने पुत्र नागों को बुलाकर सारी कहानी सुनाई और उनसे कहा कि तुम अश्व के बालों के समान छोटे हो जाओ और उच्चैःश्रवा के शरीर में लिपट जाओ, जिससे यह काले रंग का दिखाई देने लगे और मैं अपनी सौत विनता को जीतकर उसे अपनी दासी बना लूंगी। माता की इन बातों को सुनकर नागों ने कहा – यह छल तो हम नहीं करेंगे, चाहे तुम्हारी जीत हो या हार। यह सुनकर कद्रू क्रोधित होकर बोली – तुम लोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो, इसलिए मैं तुम्हें शाप देती हूं कि पाण्डवों के वंश में पैदा हुआ राजा जनमेजय जब सर्प-यज्ञ करेंगे, तब उस यज्ञ में तुम सभी अग्नि में जल जाओगे।
ब्रह्माजी और आस्तीक मुनि का वरदान
घबराकर नाग वासुकि को साथ लेकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उन्हें अपनी पूरी कहानी सुनाई। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि आस्तीक नाम का एक विख्यात ब्राह्मण होगा, वह जनमेजय के सर्पयज्ञ को रोकेगा और तुम लोगों की रक्षा करेगा। यही बात श्रीकृष्ण भगवान ने भी युधिष्ठिर से कही थी कि आज से सौ वर्ष बाद सर्पयज्ञ होगा, जिसमें बड़े-बड़े विषधर और दुष्ट नाग नष्ट हो जाएंगे। करोड़ों नाग जब अग्नि में दग्ध होने लगेंगे, तब आस्तीक नामक ब्राह्मण यज्ञ रोककर नागों की रक्षा करेगा। ब्रह्माजी ने पंचमी के दिन वर दिया था और आस्तीक मुनि ने पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी, अतः पंचमी तिथि नागों को बहुत प्रिय है।