तपश्चर्या करने से कर्मों कि निर्जरा रोती है- मुनि श्री राजपद्मसागरजी म.सा.

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बेंगलुरू : आज जे.पी.पी. श्रमणी भवन में सतिकर महातप के सामुहिक पच्क्खाण लिया 125 भाग्यशालियों ने इस तप में भाग लिया । और मुनि श्री राजपद्मसागरजी म.सा तप विषय में बताया कि शास्त्रों में 12 प्रकार के तप बतलाए है, 6 अभ्यंतर और 6 बाह्य ऐसे अलग-अलग प्रकार के तप है, तप का महत्व समझाते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा कि ,त, यानि तत्क्षण, प ,यानि पाप जो हमारी आत्मा में पाप का आवरण छाया हुआ है । उसको दूर करने का सरल उपाय है, तप के द्वारा अपनी इन्दियों को वश में करना है।

अहिंसा-संयम- और तप ए तीनों से तप में जुड़ना है और अपनी कमजोरी को दूर करना। अहिंसा यानि हिंसा से मुक्त होना, संयम यानि हमारी वाणी में संयम, खाने में संयम, संयम से बहुत कुछ फायदे है. हमारी वाणी में संयम रहेगा तो हम सबके प्रिय बन जायेंगे, पर हमारी वाणी में संयम नहि तो हम सब लोगो में और अपने परिवार में भी अप्रिय बन जाते हैं, इसलिए बोलने में ध्यान रखना चाहिए।


मुनि श्री श्रमणपद्मसागरजी ने कहा कि आज महामंगलकारी संतिकर महातप में जुड़ने वाले सभी पुण्यशाली है ए तप- सर्वशांतिदायक तप है तप से ही कर्म की निर्जरा होती है । 23 जुलाई रविवार के शुभ अवसर पर भव्य भक्तामर महापूजन का आयोजन रखा है।

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