पवित्र मन से सुकृत कार्य की अनुमोदना करने से शुभ पुण्य का बंध होता है: मुनिराज श्री राजपद्मसागरजी म.सा.

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बेंगलुरू : जे. पी. पी. श्रमणी भवन में अनेक श्रद्धालुओ को समझाते हुए मुनि श्री राजपद्मसागरजी म.सा. ने कहा पुण्य की जरूरत पड़ती है। पुण्य के बीना कुछ प्राप्त करना कठीन है, जो हम कर सकते है। वैसे अलग- अलग पुण्य के बारे सरल भाषा में म. सा. ने कहा कि मन पूण्य के विषय में बहुत ही गहेराई से और हम आसानी से पूण्य कर सके, इस प्रकार बतलाया कि मन बड़ा चंचल है, मन से हम पापो का भी उपार्जन करते है।

और पूण्य का भी उपार्जन करते. “मन के पाप कभी दिखते नहीं है, क्या सोच रहे हो, क्या विचार चल रहे है, वो हम दूसरे के भाव नहि जान सकते, पर अच्छा विचार करके, दुर्विचारो का त्याग करके, और शुभकार्यो की अनुमोदना करके मन से पूण्य का उपार्जन करना है, और सिद्धाचल महातीर्थ की यशोगाथा का स्मरण करते हुए उसका इतिहास बताते हुए कहा कि मोतिशा टुंक का निर्माण मुंबई के रहेवासी मोतिशाशेठ ने बनवाई थी, और उस का जिनालय के निर्माण में “जिनका पुरा सहयोग रहा ऐसे रामजी भाई के नामसे ‘रामपोड’ का निर्माण हुआ और मुनिश्री श्रमणपद्मसागर म.सा कहा सभी को स्वच्छ रहना पसंद है।

गंदकी किसी को भी पसंद नहीं, ऐसे शास्त्रकार भगवत ने बतलाया हे कि अरिहंत परमात्मा की भक्ति करने से 7 प्रकार जो शुद्धि बताई हैं, भूभि शुद्धि एवं जहा पर प्रभु को बिराजमान करना है, वो हृदय भी स्वच्छ होना चाहिए। 30 जुलाई रविवार को मातृ पितृ वंदना शिविर सुबह 8 बजे पूज्य गुरुदेव श्री की पावन निश्रा में अद्भुत प्रस्तुति दी जाएगी ।

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Author: mahatvapoorna

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