बेंगलुरू : जे पी पी श्रमणि भवन में अनेक श्रावक एवं श्राविकाओं समझाते हुए मुनि श्री ने कहा प “परमात्मा की अंगपूजा, अग्रपूजा और भावपूजा को समझो। अंगपूजा के बाद अग्रपूजा और के पश्चात भावपूजा की जाती है। इस पूजनविधि में एक महत्वपूर्ण पूजन है अवस्था चिंतन का परमात्मा जिनेश्वर देव की तीन अवस्थाओं का चिंतन करना होता है।
किया है कभी? केस करोगे? आपको शायद मालूम ही नहीं है होगा कि अवस्था चिंतन क्या है, और कैसे किया जाता है? जबकि अवस्था चिंतन अत्यंत महत्वपूर्ण भावक्रिया है।बाल्यावस्या घराज्यावस्था (3) श्रमण अवस्था । परमात्मा की ‘बाल्यावस्था का चिंतन परमात्मा के सामने करना है, अपनी बाल्यावस्था और परमात्मा की बाल्यावस्था में बहुत अंतर है। परमात्मा तीर्थकरदेव माता के गर्भ में श्री तीन ज्ञान से युक्त होते है। मतिज्ञान, श्रवज्ञान और अवधिज्ञान होता है।
मुनि श्री श्रमणपद्मसागरजी म सा ने कहा कि जीवन चंचल है, आत्मा शाश्वत है। जीवन अस्थिर है। आत्मा स्थिर है ,आत्मा को स्थिर, यानि शाश्वत सुख पाने के लिए परमात्मा कि नवांगी पूजा में शिक्षा की पूजा करते का परमात्मा आप सिद्धशिला में बिराजमान है, में भी सिद्धशीला में वास करू।