वन्दन करने से पापो का विसर्जन और पूण्य का सर्जन होता है : मुनिश्रीराजपद्मसागरजी म.सा.

0
10

बेंगलुरू : श्रीरामपुर स्थित जे. पी. पी. श्रमणी भवन में मुनि श्री राजपद्मसागरजी मसाने प्रवचन के दौरान वंदन के प्रकार समझाते हुए कहा कि वंदन से पाप का प्रक्षालन होता है। सबसे पहले वंदन के भाव से ही विनयगुण की प्राप्ति होती है, और विनय गुण से ही धर्म को पालना करनी है। गुरुवंदन भाष्य में विस्तार से वंदन करने की विधि बतलाई है। और साधु को वंदन करने से, पाप का निकंदन होता है।

कर्मों की निर्जरा होती है. और साधु के पांच महाव्रत के बारे मे समझाते हुए म.सा ने कहा (1) प्राणातिपात=किसी जीव की हिंसा नहि करते और नहि करवाते (2) मृषावाद= झूठ नहि बोलते (3) अदत्तादान = बीना पूछे किसी भी वस्तु या मालिक कि अनुमति बीना नई लेते (14) मैथुन = ब्रह्मचर्य का पालन करते. कंचन कामिनी का त्याग करते है (5) परिग्रह महाव्रत= यानि जितना “जरुरी हो उतना ही सामान रखते हैं परिग्रह का त्याग करते. मुनि श्री श्रमणपद्मसागरजी म.सा ने कहा कि जिस प्रकार से चंदन पूरा जीवन समपर्ण करता है। उसी प्रकार अरिहंत परमात्मा की चंदन पूजा करते समय प्रभु मेंरे में भी चंदन जैसी समपर्णता मेरे आए, और दुसरा गुण है ।

मरमीट ने की भावना पूरा जीवन अर्पण कर देता है। चंदन के वृक्ष को काटो तो भी पो सबको सुवास देता है। मेरे जीवन भी सुगंध अब बने.16 अगस्त रविवार को साधुनां दर्शनम् पुण्यं शिविर को होगा

mahatvapoorna
Author: mahatvapoorna

.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here