निर्वाचन आयोग (ईसी) ने एकनाथ शिंदे नीत धड़े को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दे दी है। इसी के साथ आयोग ने कहा कि पार्टी का चुनाव चिह्न ‘तीर-कमान’ और नाम ‘शिवसेना’ अब एकनाथ शिंदे गुट के पास रहेगा। ज्ञात हो कि शिवसेना के दोनों गुट (एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे) पार्टी के धनुष और तीर के निशान के लिए लड़ रहे हैं। बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में उपचुनावों से पहले चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट को नया नाम सौंपा था। आयोग ने उद्धव गुट को नाम के रूप में ‘शिवसेना- उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ आवंटित किया और निशान के तौर पर उद्धव को ‘जलती मशाल’ मिला था। वहीं आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट के लिए पार्टी के नाम के रूप में ‘बालासाहेबंची शिवसेना’ आवंटित किया था। चुनाव चिन्ह के तौर पर शिंदे को तलवार-ढाल मिला था।
पार्टी पर नियंत्रण के लिए चली लंबी लड़ाई के बाद 78 पृष्ठों के अपने आदेश में, आयोग ने उद्धव ठाकरे गुट को राज्य में विधानसभा उपचुनावों के पूरा होने तक ‘‘मशाल’’ चुनाव चिह्न रखने की अनुमति दी। आयोग ने कहा कि वर्ष 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के 55 विजयी उम्मीदवारों में से एकनाथ शिंदे का समर्थन करने वाले विधायकों के पक्ष में लगभग 76 फीसदी मत पड़े।
अलोकतांत्रिक है शिवसेना का संविधान- आयोग
भारत के चुनाव आयोग ने पाया कि शिवसेना का वर्तमान संविधान अलोकतांत्रिक है। आयोग ने कहा कि बिना किसी चुनाव के पदाधिकारियों के रूप में एक गुट के लोगों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त किया गया। इस तरह की पार्टी की संरचना विश्वास को प्रेरित करने में विफल रहती है। राजनीतिक दलों और उनके आचरण पर दूरगामी प्रभाव वाले अपने ऐतिहासिक फैसले में, चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को सलाह दी कि वे लोकतांत्रिक लोकाचार और आंतरिक पार्टी लोकतंत्र के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करें और नियमित रूप से अपनी संबंधित वेबसाइटों पर अपनी आंतरिक पार्टी के कामकाज के पहलुओं का खुलासा करें।
चुनाव आयोग ने पाया कि 2018 में संशोधित शिवसेना का संविधान भारत के चुनाव आयोग को नहीं दिया गया है। आयोग के आग्रह पर दिवंगत बालासाहेब ठाकरे द्वारा लाए गए 1999 के पार्टी संविधान में लोकतांत्रिक मानदंडों को पेश करने के कार्य को इन संशोधनों ने खत्म कर दिया था।
आयोग ने यह भी पाया कि शिवसेना के मूल संविधान में अलोकतांत्रिक तरीकों को गुपचुप तरीके से वापस लाया गया, जिससे पार्टी निजी जागीर के समान हो गई। इन तरीकों को चुनाव आयोग 1999 में नामंजूर कर चुका है। इसी के साथ महाराष्ट्र में शिवसेना से अब उद्धव गुट की दावेदारी खत्म मानी जा रही है।
हमें चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं: उद्धव गुट
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए उद्धव ठाकरे गुट के प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा, “आदेश वही है जिसका हमें अंदेशा था। हम कहते रहे हैं कि हमें चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं है। जब मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है और कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, तो चुनाव आयोग द्वारा यह जल्दबाजी दिखाती है कि यह केंद्र सरकार के तहत भाजपा एजेंट के रूप में काम करता है। हम इसकी निंदा करते हैं।”
सुप्रीम कोर्ट में जारी है सुनवाई
बता दें कि चुनाव आयोग का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब उच्चतम न्यायालय में शिवसेना के दोनों धड़ों के बीच कानूनी लड़ाई चल रही है। पिछले साल शिवसेना में विभाजन के बाद उच्चतम न्यायालय में दायर की गयी याचिकाओं में अध्यक्ष की शक्तियों समेत कई मुद्दे उठाये गए हैं। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा था कि शिवसेना में मतभेद से उपजा महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट से जुड़े मुद्दे फैसला करने के लिहाज से कठिन संवैधानिक मुद्दे हैं और इसके राजनीति पर ‘बहुत गंभीर’ असर पड़ेंगे।
