पापो का विसर्जन और पुण्य का सर्जन पर्युषण पर्व में होता है : मुनि श्री राजपद्मसागरजी

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पापो का विसर्जन और पुण्य का सर्जन पर्युषण पर्व में होता है : मुनि श्री राजपद्मसागरजी
पापो का विसर्जन और पुण्य का सर्जन पर्युषण पर्व में होता है : मुनि श्री राजपद्मसागरजी

बेंगलुरू: जे.पी.पी श्रमणी भवन में पर्युषण महापर्व के दुसरे दिन के प्रवचन में आचार्य श्रीलक्ष्मी सूरीश्वर म.सा.ने अष्टानिका प्रवचन के द्वारा श्रापक जीवन में करने योग्य 17 कर्तव्य के बारे में कहा है पांच कर्तव्य पर्युषण के दौरान करने चाहिये. और ग्यारह कर्तव्य वार्षिक है, जो वर्षभर में करने का होता है। संघपूजा यानि संघ की सेवा करना, श्रीसंघ में साधु-साध्वी-श्रावक एवं श्राविका का समावेश होता है। गउसको चतुर्दिध संघ कहते हैं। उनकी भक्ति करने से पुन्योपार्जन होता है।

साधार्मिक भक्ति साधार्मिक यानि सहधर्मी पैसे पुण्या श्रावकने रोज एक साधार्मिक की भक्ति करते थे। एक दिन दो उपवास करते और व्यक्ति को भोजन यानि भक्ति करते है और एक दिन उनकी श्राविका व उपवास करती साधार्मिक भक्ति करने के वैसे उन्होंने साधामिक भक्ति किया था। यात्रात्रिक, स्नात्र पूजा, देवद्रव्यवृद्धि महापूजा, धर्म जागरण, श्रुतपूजा, उद्यापन, तीर्थ प्रभावना और आलोचना, ऐसे 11 कर्तव्य होते है रन्स कर्तच्यो का वर्ष दरम्यान पालन करना है।

मुनि श्रमणपद्मसागरजी म.सा ने कहा कर्म के मर्म को भेदने वाला यह पर्व पर्युषण है रस महानपर्व में सभी उत्कृष्ट भावो के साथ धर्म की आराधना करना है। कल सुबह 8.30 बजे प्रवचन श्रमणी भवन में होगा।

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