भक्त प्रह्लाद और होलिका की पौराणिक कथा
होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि यह सत्य, भक्ति और अच्छाई की विजय का प्रतीक भी है। इस पर्व से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा भक्त प्रह्लाद और होलिका की है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक असुर राजा ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त किया। उसने खुद को भगवान मान लिया और अपने राज्य में विष्णु भक्ति पर रोक लगा दी। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु ने हर बार उसकी रक्षा की।

अंततः, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को जलाने का आदेश दिया। होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन विष्णु कृपा से चमत्कार हुआ—होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया। तभी से यह परंपरा बनी कि होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
रंगों का त्योहार: खुशियों का संदेश
होलिका दहन के अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है। यह दिन आपसी प्रेम, भाईचारे और खुशियों को समर्पित होता है। लोग पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और उत्साहपूर्वक त्योहार का आनंद लेते हैं।
सांस्कृतिक महत्व
होली का त्योहार केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह समाज में प्रेम, सद्भाव और समानता का संदेश देता है। भारत के हर कोने में इसे अपने अनूठे अंदाज में मनाया जाता है।
होली का संदेश
यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्य और भक्ति की हमेशा जीत होती है, जबकि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है। यह बुराई को जलाकर अच्छाई को अपनाने का अवसर है, ताकि जीवन रंगों की तरह खुशहाल और उत्साहपूर्ण बना रहे।