जीवित पशु निर्यात विधेयक को निरस्त किया जाए

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लक्ष्मणगढ़। सकल जैन समाज अध्यक्ष सुमेरचंद जैन ने बैठक आयोजित कर समाज को बताया कि पशुओं का जीवित अवस्था में भारत सरकार द्वारा मूकबधिर पशुओं का कानून निर्यात करने का 17 जून के बाद बनाने जा रही है ।


कुछ पशु-पक्षियों की रक्षा कर उनको अभयदान देना महापुण्य का कार्य है। पर यह और भी महत्वपूर्ण है कि सरकार की उन नीतियों- पालिसियों का बनते समय ही जैन समाज द्वारा विरोध कर उनको रुकवाया जाये ताकि उनके तहत भविष्य में होने वाली हिंसा से लाखों जीवों को, जहां तक संभव हो, बचाया जा सके। वर्तमान में हर साल भारत से लगभग ₹25000 करोड़ मूल्य का मांस निर्यात किया जाता है। इसके अलावा देश में भी लगभग 70-80 करोड़ मांसाहारी लोग हैं। इन सबके लिये भारत वर्ष में वैध-अवैध तरीक़े से सालाना करोड़ों- करोड़ों पशुओं का वध होता है। इतने बड़े पैमाने पर देश में लगभग कोई भी कोशिश और कोई भी आश्वासन इस हिंसा को कम करवा पाने में असफल रहा है।


अब बड़े अफसोस की बात है कि भारत सरकार का मंत्रालय- मत्स्य पालन, पशुपालन, एवं डेयरी- और एक ऐसी पालिसी ला रही है। जिससे कि जिंदा पशुओं का भी एक्सपोर्ट शुरू हो सके। मांस व्यापारियों की लाबी के दबाव में आकर‌, अगर एक बार यह कानून बन गया तो बाद में तो सर्वशक्तिमान ईश्वर भी उसे निरस्त कराने में फ़ेल हो जायेंगे। पंसारी की दुकान का सब सामान कमोडिटी ही है। अब सरकार के पशुपालन मंत्रालय जिंदा पशुओं को भी कमोडिटी की परिभाषा में डालना चाह रही है। जैसे कि पशु-पक्षी जीवित न होकर लकड़ी – लंगर की तरह बेजान हों? ऐसा करने से कमोडिटी सिर्फ व्यापार की वस्तु बनकर रह जायेगी।

क्या आप इस से सहमत हैं। उपस्थित समाज के सभी लोगों ने गहन विरोध प्रकट कर केंद्र सरकार को आपत्ति दर्ज करने का सर्वसम्मति से फैसला लिया इस संदर्भ में जिंदा पशुओं को वस्तु या सामान मानकर उनके एक्सपोर्ट को मंजूरी देने के लिये बनने वाले कानून का विरोध कर केंद्र सरकार के मत्स्य पालन पशुपालन और डेयरी मंत्रालय को उक्त बनने जा रहे कानून में समाज की ओर से आपत्ति दर्ज कराई है।

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